
Recently read Mrityunjay by Shivaji Sawant.It was gifted to me by my friends on my birthday. Should have completed it long ago. Anyways, this was my best read so far. In fact now I feel , my friend was not wrong when he said I was missing out on something , when I was procrastinating so much in starting off with the novel...
A few lines from the book, taken from different instants of the great warrior Karna's life, are really touching, I have loved them... Would like to put those here...
कर्ण : "श्रद्धा में बड़ी शक्ति होती है । किसी न किसी पर श्रद्धा रखे बिना मनुष्य जीवित ही नहीं रह सकता । "
.......................................................................................................................................................................
कुंती : " बचपन शीतल जल का एक चषक होता है, जिसको प्रकृति भावी जीवन के रेगिस्तान को पार करते समय आहात होनेवाले प्राणी के लिए पहले से ही निर्माण कर रखती है । "
..........................................................................................................................................................................
कुंती : " स्त्री का जन्म कुछ प्राप्त करने के लिए नहीं , सब कुछ समर्पित करने के लिए ही होता है। "
..........................................................................................................................................................................
कुंती : " जब जब स्मृतियाँ मेरा पीछा करतीं तब तब मैं अपना मन किसी न किसी काम में उलझा लेती। भूतकाल का चित्र अदृश्य हो जाता। कभी कभी केवल दूसरों के लिए जीना पड़ता है और वह भी अपने आंसू छिपाकर जीना पड़ता है। "
..........................................................................................................................................................................
कर्ण :" निद्रा सबसे उदारहृदयी माता है। विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न दुःख को यह समान ममता से कुछ समय के लिए ही सही पर निश्चित रूप से अपने विशाल उदर में समां लेती है। "
...........................................................................................................................................................................
द्रोण द्वारा अपमानित होने के बाद , कर्ण :" जीवन केवल एक दावानल है। किसी के द्वारा किसी भी तरह प्रज्वलित । किसी न किसी को जला देनेवाला । और कभी न कभी अपने आप ही बुझ जानेवाला । .............
मनुष्य एक बार सुख और आनंद के क्षणों को भूल सकता है , परन्तु दुःख के और विशेष रूप से अपमान के क्षणों को तो वह प्रयत्न करने पर भी भूला नहीं पाता । "
.........................................................................................................................................................................
कर्ण :" भाग्य मानव द्वारा निर्मित सबसे अधिक भयंकर भूल है। उसको मनुष्य के जीवन से जोड़कर प्रत्येक व्यक्ति सदैव सत्य से दूर भागना चाहता है।"
..........................................................................................................................................................................
A few lines from the book, taken from different instants of the great warrior Karna's life, are really touching, I have loved them... Would like to put those here...
कर्ण : "श्रद्धा में बड़ी शक्ति होती है । किसी न किसी पर श्रद्धा रखे बिना मनुष्य जीवित ही नहीं रह सकता । "
.......................................................................................................................................................................
कुंती : " बचपन शीतल जल का एक चषक होता है, जिसको प्रकृति भावी जीवन के रेगिस्तान को पार करते समय आहात होनेवाले प्राणी के लिए पहले से ही निर्माण कर रखती है । "
..........................................................................................................................................................................
कुंती : " स्त्री का जन्म कुछ प्राप्त करने के लिए नहीं , सब कुछ समर्पित करने के लिए ही होता है। "
..........................................................................................................................................................................
कुंती : " जब जब स्मृतियाँ मेरा पीछा करतीं तब तब मैं अपना मन किसी न किसी काम में उलझा लेती। भूतकाल का चित्र अदृश्य हो जाता। कभी कभी केवल दूसरों के लिए जीना पड़ता है और वह भी अपने आंसू छिपाकर जीना पड़ता है। "
..........................................................................................................................................................................
कर्ण :" निद्रा सबसे उदारहृदयी माता है। विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न दुःख को यह समान ममता से कुछ समय के लिए ही सही पर निश्चित रूप से अपने विशाल उदर में समां लेती है। "
...........................................................................................................................................................................
द्रोण द्वारा अपमानित होने के बाद , कर्ण :" जीवन केवल एक दावानल है। किसी के द्वारा किसी भी तरह प्रज्वलित । किसी न किसी को जला देनेवाला । और कभी न कभी अपने आप ही बुझ जानेवाला । .............
मनुष्य एक बार सुख और आनंद के क्षणों को भूल सकता है , परन्तु दुःख के और विशेष रूप से अपमान के क्षणों को तो वह प्रयत्न करने पर भी भूला नहीं पाता । "
.........................................................................................................................................................................
कर्ण :" भाग्य मानव द्वारा निर्मित सबसे अधिक भयंकर भूल है। उसको मनुष्य के जीवन से जोड़कर प्रत्येक व्यक्ति सदैव सत्य से दूर भागना चाहता है।"
..........................................................................................................................................................................
4 comments:
hii.. after reading these lines i can understand that this time u selected a very good novel.. n if nyone is in communion with the story, there r a lot of things v can learn frm the past.. really its good to spent time with books..
i recalled each of these lines... and i am looking forward to read mratyunjay again...
and definitlely, best read...!!
so u read it! and loved it 22!!!
well, i'll add another line 2 ur post, my personal fav:
parshuram said before sleeping when he asked karna to see to it dat he doesn't get disturbed,
" neend aur wachan, kabhi adhoore nahi chhodne chahiye."
@chetna: yeh sahi tha...
i loved it too..
Post a Comment